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________________ (८५) ( 339 ) रंवत १८७७ - - प्रोपाव विवं प्रतिष्ठितं भी जिन हर्ष सूरिणा कारितं - - सांवत सिंहज पदार्थ मल्लेन --- । ( 340 ) संवत् १८७७ वैशाख शुक्ल १५ श्रीपार्श्वविवं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्ष सूरिणा गोलेछा महतावो - - मूलचन्द्र धर्मचन्द्रेण कारितं । ( 341 ) संवत १८८७ वर्षे फाल्गुन शुक्ल १३ श्रीपार्श्वनाथ जिन विंवं दुगड ज्येष्ठमल्ल भार्या फत्ती नाम्न्या वाचक चारित्रनंदि गणि उपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं च । ( 342 ) संवत १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां सोमवासरे श्री शितलनाथ विवं कारितं ओशवंश दुगड़ गोत्र प्रतापसिंहेन प्रतिष्ठितं च थी जिन चंद्र सूरिमिः । ( 343 ) संवत १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीचंद्रप्रभ जिनविवं कारितं ओशवंशे नवलखा गोत्रे मेटामल पुत्र जसरूपेन प्रतिष्ठितं च वृहद महारक खरतर गच्छ श्री जिनाक्षयसूरी चंचरीक श्रीजिनचंद्र सूरिभिः । ( 34 ) सं० १८९७ वर्षे ---श्री ऋषम जिनवि कारितं प्रतिष्ठितं ---
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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