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________________ तैरापथ के सप्तम गणपति 'डालिम' दिवस मनाएगे । उज्जयिनी गुरु-जन्मभूमि मे गौरव गाएगे || ३० नौ मे जन्म, तेवीमे दीक्षा आत्म-साधना पाई है । बहुश्रुति सम्यग् वने विकसित विभुताई है। इकतीसे गुरुदेव दया से ग्रागेवान कहाएगे ॥ १॥ उन बिहारी देश विदेशे विचर वरी विस्याति जो । अद्भुत अनुभव प्राप्त किए क्या वर्णे रयाति जो । बड़े भाग्य मे शासन मे ऐसे शामनपति आएंगे ||२|| आकस्मिक घटना ने जो इतिहास नवीन बनाया है । डालिम के उस दिव्य रूप ने हृदय डुलाया है । भैक्षव गण के बच्चे-बच्चे जुग-जुग शीश झुकाएगे ||३|| प्रवचनकार रूप मे जब मण्डप मे मण्डित सिंह गजना, मुदिर घोप अपनापन हो समवसरण मे विरले जो नही डगमग शीश लय ग्रोजस्वी, वचस्वी और यशस्वी हो तो ऐसे हो । सुनते हाक प्रतिद्वन्द्वी मानो भूमि मे पैसे हो । सहजतया चरणारविन्द को विरले हो छ् पाएंगे ||५|| गुरु ] होते थे । खोते थे । डुलाएगे ॥ ४ ॥ - मीखणजी का चेला दशन वेगा-वगा दीज्यो जी - [ ६६
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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