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________________ गुरु ] २८ , मन सुमर-सुमर नित भिक्षु नाम हो जायेंगे सव सिद्ध काम | अजरामर अक्षय ग्रटल धाम, मन सुमर-सुमर नित भिक्षु नाम । 1 जो सन्त-प्रवर भव सिन्धु पोत, वहते वन निर्भय प्रतिस्रोत । जन-जन के जो प्रेरणा स्रोत, कैसा जिनका लाघव ललाम ॥१॥ पावन पुरुषोत्तम के ग्रार्हद् दर्शन के अध्यात्मवाद मे साधनाराम जो सपूत, अग्रदूत | अनुस्यूत, श्रविश्राम ||२|| प्रवृत्तिया सहज ही प्रसकीर्ण, जो अन्ध रूढिया जीर्ण-शीर्ण 1 कर एक-एक सबको विदीर्ण, उत्तीर्ण हुए प्रति दृढ स्थाम ॥३॥ शास्त्रम्बुधि का अभिनव निचोड, धार्मिकता को दे नया मोड | सारे जीवन को जोडतोड, तेरापन्थ सुपरिणाम ॥४॥ उसका लय-अभिनन्दन भारत के सपूत [ ६५
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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