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________________ २७ 1 गुरुवर कण-कण मे नव चिन्तन भर दो । भिक्षो । जन-जन मे नव जीवन भर दो। भर दो भर दो। ! भर दो। भर दो । थे, तुम तुम धर्म - क्रान्ति - उन्नायक अटल सत्य निर्णायक थे. शासन के भाग्य विधायक थे, - अपना वह अनुपम अनुशीलन भर दो । भर दो ! भर दो | ॥ १॥ तुम साध्य सिद्धि से स्वस्थ बने, पथ- दर्शक परम प्रशस्त वने, आत्मस्य वने, विश्वस्त बने, अविचल अविकल वह सद्गुण धन भर दो । भर दो | भर दो | ||२|| लय-- उतरी तम पत्र पर ज्योति चरण गुरु ] कप्टो मे क्षमा तुल्य क्षमता, थी स्थितिप्रज्ञ की सी समता, सबके प्रति निर्मित ममता, अपनत्व लिए वह अपनापन भर दो । भर दो। भर दो ' ॥३॥ सयम के सच्चे माधक थे, चाराव्य और आराधक थे, जिनवाणी के अनुवादक थे, वह धार्मिक मार्मिक सघन मनन भर दो । भर दो। भर दो | ॥४॥ [ ६३
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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