SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ गुरुदेव । तुम्हारे चरणो मे ये शीश स्वय भुक जाते है । तव वाडमय अमृत करणो मे ये हृदय हिलोरे खाते है || → क्या वर्णन हो उपकारो का, जो जीवन जटिल समस्या है । उसका भी सुन्दर समाधान पाया, हम प्रकट दिसाते है || १॥ कैसी यो विशद विराट भावना जन-जन के उद्धरने की । भयभीतो के भय हरने की, हम सुमर सुमर सुख पाते हैं || २ || वह व्याख्या विरल अहिंसा की, हिंसा की झलक जरा न जहा । जो विश्व मैत्री का विमल रूप, जन-जन जिसको अपनाते है || ३॥ खुद जागो और जगाओ जग को, यही दया है दान यही । इसमे सबका उत्थान मान, जन-जन मे जागृति लाते हे ||४|| संगठन का कैसा जादू, किया तुमने सावरिये साधु झगडो की जडे जला डाली, हम सव वलिहारी जाते हे ||५| नही शिथिलाचार पनप पाया, सयम की रही छत्र छाया । श्री वीर पिता के वीर पुत्र । तेरापथ हम सरसाते है || ६ || वह अटल रहे मर्यादा तेरी, लोह लेखिनी से जो लिखी । समवेत चतुष्टय श्वेत-सघ माघोत्सव आज मनाते है ||७|| वि० सं० २०११, मर्यादा महोत्सव, बम्बई लय- घुतश्याम तुम्हारे द्वारे पर गुरु ] [re
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy