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________________ : १५ : ओ ! श्वेत संघ के सवल सैनिकों ! अपना फर्ज वजाना है । मिट जाए जनता की जड़ता, सक्रिय कदम उठाना है ।। कैसी है दयनीय दशा मानव, मानवता छोड़ रहा, चलता है वीहड़ - पथ में पशुता से नाता जोड़ रहा, बोझिल है जन-जन का जीवन स्वार्थो का साम्राज्य खिला, दुराचार के गहन गर्त में मानो गिरने जगत चला, पुनः चेतना देकर उसको फिर सन्मार्ग दिखाना है ||१|| लगी अखरने अर्थ-विषमता, पूंजी श्रम का प्रश्न खड़ा, सवका अग्रदूत वन श्राया वादों का व्यामोह बड़ा, राष्ट्र- राष्ट्र को खड़ा निगलने अविश्वास है जन-जन में, कथनी-करनी में न समन्वय लगे धनार्जन की धुन में, समता, क्षमता, अनासक्ति का उनको पाठ पढ़ाना है ॥२॥ सन्तों की वह प्रोज भरी वाणी कुर्बानी साथ लिए, निखर पड़ेगी जन-जन के अन्तस्थल को ग्राह्वान किए, एक जगेगी अभिनव ज्योति उसी प्रेरणा के वल पर, बढ़ता ही जाएगा मानव उन्नत पथ पर जीवन भर, कोई नही रोकने पाए ऐसा स्रोत वहाना है ॥३॥ मर्यादोत्सव के अवसर पर दृढ़प्रतिज्ञ ! सीना ताने, 'तुलसी' मानवता को रखते जन-जीवन को पहचाने, क्यों होगा एहसान किसी पर होगा वही कार्य अपना, जिसको सफल बनाने का देखा था भिक्षु ने सपना, फिर से वही दिशा दर्शन दे अभिनव क्रान्ति जगाना है ॥४॥ वि० सं० २००८ मर्यादा महोत्सव, सरदारशहर ( राज० ). लय - ओ ! चलने वाले रुकने का ४२] - [ श्रद्धेय के प्रति
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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