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________________ गुर] दीपा के लाल दुलारे | स्वीकार करो श्रद्धाजलिया रे । गगन सितारे | जिनमत हो । अखिल सघ - प्रखियो के तारे । - - भक्तो के हृदय निवासी, भक्तिमय कुसुम की राशि, यह लो, लाखो जन के मन के रखवारे ॥ १ ॥ फिर क्या उपहार सजाए ? फिर क्या प्रभु चरण चटाए इससे वढ, वस्तु कौन-सी पास हमारे ॥२॥ ? तुमने जो राह दिखाई, घट-घट मे ज्योति जगाई, छाई है, यत्र तत्र रो-रो मे सारे ॥३॥ प्रतिपल तुम पद चिह्नों पर, चलते व चलेंगे जी भर, इसमें वटकर क्या स्मारक प्रभो । तुम्हारे ||४| प्राणी- प्राणी दिल - प्रागण, रोपें श्रद्धापुर क्षण-क्षण, जीवन के कण-कण में यह प्रण है प्यारे ||५|| तन- --वाला जवानिया मार्ग [RE
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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