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________________ : ४ : अहा ! अभिनव उच्छव छाए, तेरापन्थन में । मन उमड़ उमड़ घन आए, मण्डप मैदान मे ॥ २०] जैन जगत की अनुपम ख्याति, मद्गुरु मुक्ताफल मे ख्याति, साकार उतर कर सरसाए भिक्खन अभिधान में ॥ १ ॥ वाह माता दीपां की कुच्छी, मानो कल्पलता की गुच्छी, यदि तुलना हम कर पाएं, प्राची दिशि भान में ॥२॥ अब लों वह मरुधरा कहाए, क्यों न आज हम क्रान्ति उठाएं, वसुगर्भा कह बतलाएं, जन सकल जहान में ॥३॥ वीर वीरता विश्व - विभूति, मूर्तिमती मानो मजबूतो, सतयुग की लहरें लाएं, कलियुग मध्याह्न में ॥४॥ आध्यात्मिक पथ एक पथिकता, प्रतिभा पुंरंज विवेक अधिकता, जिनवर की याद दिलाए, शिव-सुख सन्धान में || ५ || - ग्रन्थ-गठन, संगठन संघ में, दूरदर्शी नव-नव प्रसंग में, कर स्मरण शीश झुक जाए, सहसा सम्मान में ॥६॥ दृढ प्रतिज्ञ दिल निमल नगीना, प्रबल पराक्रमशाली सीना, यश झल्लरी झण-हणणाए, सुरनर इक तान में ॥७॥ लय - माहे रमजान मे [ श्रद्धेय के प्रति
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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