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________________ स्वामीजी रो शासण, म्हाने घणो सुहावैजी । वीर प्रभुजी रो ग्रासण, म्हाने घणो मुहावैजी | घणी सुहावै, हृदय लुभावै, तारक तेरापन्थ || मर्यादामय जीवन सारो, मर्यादा रो मान । श्रात्म-नियत्रण अरु अनुशासन है शासण री शान ॥१॥ एकाचार्य, एक समाचारी, एक प्ररूपणा पथ । श्रो नूतन अद्वैत निकाल्यो, वाह । वाह । भिखणजी सत ॥२॥ पावस मे प्रसरे, करें अपणो शीत काल सकोच । निर्झरिणी जिम शासण सरणी अन्तर मन ग्रालीच ॥३॥ सेवाभावी सुविनीता रो बढ़ खेतसी तथा रायचन्द श्रो त्यो सहज प्रत्यक्ष } निन्नाणू रपिया नोली मे आयो विनय ग्राचार | शेप एक वाकी, बाकी गुण, स्वर्ण सुरभि सचार ||५|| गुरु ] बहुमान | प्रमाण ||४|| विद्या भारभूत वणज्यावै, कला कलकित होय । नही धारी गणि गण इकतारी, वारी खूब विलोय ||६|| जो दलबन्दी रा दल-दल म्यू, दूर रहे दश हाथ । सघ हितेच्छु तिण री तुलना, रसिया रोहिणी साथ ||७|| नय—- माह [toe
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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