SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीखणजी म्वामी भारी मर्यादा वाधी मघ मे। प्रवल परतापी शासन वीर रो, जिणमे जग रही जगमग ज्योत हो । देखी दशा है दयामणी पातो साधु मघ की आप हो। काप्यो कलेजो म्हारे पूज्य गे किन्ही मूल महित थिर थाप हो ।।१।। मकल सावु अरु साधवी वहो एक सुगुर री प्राण हो। चेला चेली अाप पापरा कोड मत करो, करो पचखाण हो ।।२।। गुरु भाई चेला भणी कोड मूपे गुर निज भार हो। जोवन भेर मुनि माहुणी कोड मत लोपो तमुगार हो ॥३।। आवै जिणने मूडने कोड मतिरे बधाो भेस हो । 'पूरी कर कर पारखा कोइ दीक्षा दिज्यो देख देख हो ॥४॥ बोल श्रद्धा प्राचार रो कोड नवो निकलियो जाण हो। मत चरचो जिण तिण कने करी गणपति वचन प्रमाण हो ॥५॥ जो हिरदै वैसे नही तोइ मति कगे खीचाताण हो। केवलिया पर दोडद्यो पा है अरिहन्ता री प्राण हो ॥६॥ उनन्ती गणी गण तणी गोड मति कगे, मति मुणो मैण हो। मजम पानो मानरो कोइ पल-पल छिन-दिन रैन हो ॥७॥ अपरदा गण म्यू टन कोड एक, दो, तीन अवनीत हो। माधु त्याने मरधो मती कोड मत परो परिचय-प्रीत हो । प-यपावो गावा [१०५
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy