SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भिक्ष भवि तारे तारे तारे, दीपा मात दुलारे । अग्विल जगत उजियारे, भिक्षु भवि तारे तारे तारे ॥ विना इक दिनकर जगतो की हुवै दगा कुदशा रे। अज्ञानान्ध तमम घर-घर मे निज कर चरण पमारे ॥१॥ घटा-पथ अरु कापथ घटना उभय वणी इक मारे । ठोट-ठोट लुक-छिप कर वैठचा लु टन हेतु लुटारे ॥२॥ कलह कलाप उलूक उमाहित करन लग्या घुर्गरे । कुमति कुनय चमचेड कन्हैया उर-उड मोद मना रे ॥३॥ कमलाकर भवि नर कुम्हलाया तिग तिगताग निहारे। चोवीदार मु घृणित लोचन मच ग्ही हाहाकारे ॥४॥ इण अवमर मरुधर उदयाचन उदयो उचित प्रकारे । मानु मनग्रा युत भानु भिक्षु नाम धग रे ॥५॥ तरुण तेज कर तिमिर निकर नो मोज मतम निरधारे। न्याग गजपय, इनर इतर पथ ममुचित रूप दिया रे ॥६॥ माल पराहत चोर लुटेरा नहि कोई जोर मबारे। तह उनूप लूक्या गपट मे नहिं अहिं होत बजारे ॥७॥ तुमति सुनय चमचेट पन्हैया दुर्जन हृदय मझा रे । अन्यमार दचार देम कर छुप गयो भय के मारे || मद-तुम ऐगा जी ग [१०१
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy