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________________ पुनरपि प्रेरित जन समझास, प्रारम्भी कियो प्रवन प्रयास । सारी-मार्ग निर्माग जागरणी ॥१२॥ अन्न पाण रो किस्यो रे प्रमाण, साम में रहता निज प्राण । मगे नहिं बहु शिष्य गिग्यणी ॥१४॥ श्रावक श्राविका रो ममुदाय, अवलोकता आगम भाय । खूब करी प्रभु समझावणी ॥१५॥ वय सत मप्तति वर्प रो पाम, नहिं ठहरया कही एकण ग्राम । विचरया नित जिम नभ तरणी ॥१६॥ यावज्जीव लियो सथार, तिण माहे पियो अद्भुत कार । कौतुक मुणी गुर-वागरणी ॥१७॥ जिनमत को रे जमायो झण्ड, मेटयो शिथिलाचार अफण्ड । भनधि तारण तू तरणी ॥१८॥ माठं भादव मित गुन पाम, तेग्म तिचि माध्यो मुग्धाम । चरमोत्लर निधि तेह तणी ||६|| पटधर भाग्मन, अपिगय, जय,मप, माणक, टान मुहाय । पार मूरति मन ही ॥२०॥ ftv
SR No.010876
Book TitleShraddhey Ke Prati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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