SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नों के उत्तर .४४२ -vya नाश न करे । शिकार के जघन्य पाप से सदा दूर रहे। इस में उसका भी हित है और जगत के प्राणियों का भी हित है। ........ ६. चोरी ..... चोरी करना यह भी एक दुर्व्यसन है। दूसरे के अधिकार में . रही हुई वस्तु को नाजायज तरीके से अपने अधिकार में लेना चोरी . है। किसी व्यक्ति द्वारा रखी गई वस्तु को उसके वापिस मांगने पर इन्कार कर देना या उसमें से थोड़ा सा हिस्सा लौटाना भी चोरी है। किसी भोले-भाले ग्रामीण व्यक्ति या बच्चे की नासमझी का लाभ उठाकर उसे ठग लेना तथा उसे धोखा देकर उसके धन माल को छीन.. लेना या उससे अधिक पैसे ले लेना भी चोरी है । चुंगी या टैक्स वचाने के लिए माल छिपाकर लाना या अफसरों को झूठे विल दिखा कर चुंगी बचा लेना भी चोरी है। इन्कमटैक्स बचाने के लिए दो खाते रखना, झूठा जमा खर्च करना भी चोरी है । असली माल दिखा कर नकली माल देना तथा अच्छी वस्तु में खराब वस्तु मिलाकर देना भी चोरी है। वर्तमान युग में यह वृत्ति अधिक दिखाई दे रही है। घो-तेल तो क्या, कोई.खांचं पदार्थ शुद्ध नहीं मिलता। आटा, नमक, - मिर्च, मसाला जो कुछ लो उसमें मिलावट ही मिलेगी। गृहमंत्री गो विन्द वल्लभ पन्त ने एक भाषण में बड़े दर्द भरे शब्दों में कहा था कि मुझे इस बात से संदेह है कि बाजार में खुला बिकने वाला डालडा घी (Vegetable Ghee) भी शुद्ध मिलता है। अर्थात् नकलो घी में भी मिलावट, कितना गहन पतन है। आज हम अंग्रेजों की निन्दा करते हैं। उन्हें मिथ्यात्वी एवं अनार्य बताते हैं । पर अपने आप को गर्व से आर्य कहने वालों को देखना चाहिए कि हम कितने पानी में हैं। व्यापारिक दृष्टि से आज अंग्रेज़ भारतियों से अधिक प्रमाणिक हैं। वे
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy