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________________ दशम अध्याय commmmmmmrrrr--- फिर क्या करूं ? ... : . -- विचारक- इस बढती हुई वासना को देख कर विचारक ने स्पष्ट शब्दों में कहा- वत्स ! फिर तो घर में कफन रख सो जायो। न मालूम किस समय वासना की बाग तुम्हें जला कर समाप्त कर दे। : पाश्चात्य विचारकों ने ही नहीं, भारतीय संस्कृति के विचारकों ने भी यही बात कही है। वैदिक साहित्य में सन्तान इच्छा के सिवाय स्त्री-पुरुष को सहवास करने का, भोग भोगने का निषेध किया गया । है। जैनागमों में भी पति को स्वपत्नी में और पत्नी को स्वपति में । पासक्त रहने की नहीं, बल्कि सन्तोष वृत्ति रखने की बात कही है। :: परन्तु, इन्सान मर्यादा के वांध को तोड़ कर बहने लगा। वह वासना में इतना गहरा डूब गया कि एक पत्नी से तृप्ति नहीं हुई तो दूसरा, तीसरा; चौथा विवाह किया। और वहां भी उसकी वासना . अंतृप्त हो रही तो अपनी दृष्टि को इधर-उधर दौड़ाने लगा। पतिपत्नी की मर्यादा की अक्षांश रेखा को लांघ गया। पर इससे पारिवारिक व्यवस्था विगड़ने लगी तो उसने नारी की दुर्बलता से लाभ उठा कर उसे घर से बाहर निकाल कर बाजार में ला बैठाया है। .. - और शाक-भाजी की तरह उसके शरीर का मोल होने लगा। इस तरह ... : कुछ पैसे देकर पुरुष अपनी वासना की भूख को मिटाने का दुष्प्रयत्न करता रहा। ... .... ... - अपनी इस पाप भावना को छुपाने के लिए इसे धर्म एवं कला का रूप दिया गया । मन्दिरों एवं मठों में देवदासी के रूप में, नृतकी के वेश में स्वीकार करके उस पर धर्म एवं कला की छाप लगा दी और उसे सदा से चली आ रही परम्परा बता कर अपने आपको सारे दोषों से मुक्त कर लिया। नारी उस समय विवश थो। उसके पास
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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