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________________ अठारहवां अध्याय .. योजन का पुष्करा द्वीप। इस प्रकार १+४+८+१६+ १६-४५ लाख योजन का अढाई द्वीप है। जम्बूद्वीप के मध्य में खड़े होकर एक अोर से पुष्करार्घ द्वीप तक. भूखण्ड की चौड़ाई की गणना करने लगें तो २२ लाख योजन का अढ़ाई द्वीप होता है, परन्तु _जव जम्बूद्वीप के दोनों ओर से उसकी गणना करने लगें तो दोनों ओर से २२-२२ लाख योजन बनते हैं, दोनों को मिला कर ४४ लाख और उन में एक लाख योजन का मध्यस्थ जम्बूद्वीप मिलाकर ४५ लाख योजन बनते हैं। ....... ... ... ... .. .. ... अढ़ाई द्वीप में ही मनुष्य रहते हैं, इसलिए इसे मनुष्य-क्षेत्र.या . मनुष्यलोक भी कहते हैं । अढ़ाई द्वीप के वाहिर मनुष्यों की उत्पत्ति नहीं होती, वादर अग्निकाय, द्रह (तालाव), कुण्ड, नदी, गर्जना-शब्द, विद्युत्, मेघ, वर्षा, प्रोले नहीं होते और दुष्काल भी नहीं पड़ता। मानुषोत्तर पर्वत के वाहिर के पुष्करा द्वीप में देवताओं तथा तिर्यञ्चों : का निवास रहता है। विद्या-सम्पन्न मुनि या वैक्रिय-लविधारी ही.... मनुष्य अढाई द्वीप के वाहिर जा सकते हैं, पर उनका जन्म-मरण तो..... . मानुषोत्तर पर्वत के अन्दर ही होता है। . .... ... मनुष्यजाति के मुख्यतया दो भेद होते हैं आर्य और म्लेच्छ। .. . निमित्त-भेद से छः प्रकार के आर्य माने गये हैं-१-क्षेत्र से, २-जाति से, ३-कुल से, ४-कर्म से, ५-शिल्प से और ६-भाषा से। .. क्षेत्र से प्रार्य वे होते हैं, जो १५ कर्मभूमियों में और उनमें भी जो . ... जिहां असि-युद्ध, मसि-लेखनविधि, कृषि-खेती, राज्यनीति, साधु, साध्वी, धर्मव्यवहार, ७२ कला पुरुषों की, ६४ कला स्त्रियों की तया १:०० प्रकार को शिल्प. कर्म पाया जाए उसे कर्म-भूमि क्षेत्र कहते हैं। जहां ये सब कार्य न हों वह अकर्म भूमि कहलाती है । ५ भरत, ५ ऐरावत, ५ महा-विदेह, ये १५ कर्मभूमियों के क्षेत्र . .. माने गये हैं.। ५. देवकुरु, ५ उत्तरकुरु, ५ . हरिवर्ष, : ५. रम्यकवर्ष, ५ हैमवत, ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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