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________________ .. सोलहवां अध्याय - इस का निपेध क्यों ? ... . उत्तर-मूर्तिपूजा या मूर्ति को वन्दन करने से यदि मन. टिकता हो, तव तो जितने भी मूर्तिपूजक हैं, सभी के मन टिक जाने . चाहिए थे। किन्तु मूर्तिपूजा करते-करते, किसी को ५०, किसी को . ६०, किसी को.७० वर्ष हो गए हैं, तब भी उन का मन नहीं टिका । अतः मूर्तिपूजा से मन टिकता है, ऐसा कहना ठीक नहीं है । यदि कहा जाए कि मूर्ति पर दृष्टि जमा कर मन को एकाग्र किया जा सकता है तो यह भी कोई सिद्धान्त नहीं है। क्योंकि दृष्टि टिका . कर मन को टिकाने के अन्य भी अनेकों साधन हैं । नासिका के __अंग्रभाग पर दृष्टि जमा कर मन को स्थिर किया जा सकता है और पांव के अंगूठे पर दृष्टि टिका कर मानसिक चंचलता को हटाया . जा सकता है। इस तरह अन्य पदार्थों पर भी दृष्टि स्थिर करके . मन को एकाग्र किया जा सकता है। केवल मूर्ति पर ही दृष्टि जमा कर मन को टिकाया जा सकता है, ऐसा कोई सिद्धान्त नहीं है। मानसिक एकाग्रता के लिए मूर्ति आदि का कोई प्रश्न नहीं है, वहां .तो अभ्यास की आवश्यकता होती है। जिस किसी वस्तु पर दृष्टि टिका कर मन को एकाग्र करने का जितना-जितना अभ्यास बढ़ता चला जायगा, उतना-उतना मन एकाग्र होता चला जायगा। और चंचलता छोड़ता चला जायगा। वह अभ्यास किसी भी पदार्थ पर किया जा सकता है । मूर्ति की तो बात हो क्या है ? किसी दीवार . . . पर दृष्टि जमा कर देखते चले जाएं, और उस अंभ्यास को बढ़ाते. : चले जाएं तो एक दिन मन स्थिर हो जायगा। वस्तुतः मन की - स्थिरता के लिए मूर्ति आदि किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता . नहीं है, उसके लिए तो सतत अभ्यास की जरूरत है । और इसी लिए .. गीताकार ने मानसिक चंचलता को दूर करने के मूर्ति. को साधन ।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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