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________________ ८१६ प्रश्नों के उत्तर ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ तरह के *याक्रमण होते रहे हैं और इसे समाप्त करने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। तथापि यह जाति आज भी जीवित है। आज भी चट्टान की तरह मजबूती के साथ खड़ी है, तो इसका कारण केवल जैन जाति के अपने पर्व थे । पर्यों के माध्यम से इसे एक स्थान पर बैठ कर अपने हानि-लाभ सोचने को अवसर मिलता रहा है। इसी लिए पर्व किसी भी जाति की विखरी हुई शक्ति को एकत्रित करने में अत्यधिक लाभदायक . माने जाते हैं, और आध्यात्मिक तथा सामाजिक संसार में इनका अपना एक विशिष्ट स्थान है। प्रश्न -पर्व कितने प्रकार के होते हैं ? . - उत्तर-पर्व दो तरह के होते हैं। एक लौकिक और दूसरे अलौकिक । जिस पर्व में केवल लौकिकता की प्रधानता होती है, सांसारिकता का पोषण होता है। नवीन-नवीन वस्त्र सिलाए व पहने . जाते हैं, अनेक प्रकार के मिष्टान्न और खाने-पीने के अन्य अनेकविध साधन जुटाए जाते हैं। नूतन-नूतन आभूषणों का निर्माण और उन से शरीर को आभूषित एवं शृगारित किया जाता है। नृत्य और संगीत होते हैं, रंगरलियां मनाई जाती हैं तथा जिस में जीवन का उपवन रागरंग के सुगन्धित पुष्पों से महक उठता है, उस पर्व को लौकिक पर्व कहते हैं। होली, विजयदशमी, महावीर जयन्ती आदि लौकिक पर्व हैं। वैसे तो लौकिक पर्यों का सम्बंध केवल.. जीवन के वाह्य वातावरण से होता है, और आत्मिक जीवन के : 'उत्थान या कल्याण के साथ उन का कोई विशेष सम्बंध नहीं '.. होता, किन्तु जैन धर्म की यह विशेषता रही है कि उसने लौकिक .. . पों की लौकिकता को गौण रख कर उन में अलौकिकता के दर्शन ... * इसके लिए 'सरिता' का "हमारी धार्मिक सहिष्णुता नामक लेखें देखना चाहिए।
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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