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________________ चतुर्दश अध्याय ७ .... भी उन्होंने कभी अनुमोदन किया। प्राचारांग सूत्र के अनुसार . भगवान सदा अप्रमत्त अवस्था में रहे, छद्मस्थ दशा में उन्हों ने - किसी प्रमाद का सेवन नहीं किया। इतने स्पष्ट प्रमाण होने पर... . भी भगवान महावीर को भूला कहना शास्त्रीय अज्ञता नहीं तो. ___ और क्या है ? .. .... . . एक बात और है। भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महा- . वीर ने जो भूल की थी, उन्हें अपनी भूल को स्वीकार करके जनता .. ." को सावधान करना चाहिए था कि मैंने यह भूल की है, तुम ने . · ऐसी कोई भूल मत करना । पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। .... जीव को बचाना पाप नहीं है, किन्तु धर्म है । यह वात ज्ञाता— सूत्र में वरिणत मेघ कुमार के जीवन से भी भली भांति प्रमाणित . . हो जाती है । भगवान महावीर ने स्पष्ट कहा था-मेघ कुमार ! .. तूने हाथी के भव में चार कोस का मण्डल बनाकर आग से जीवों : ..की रक्षा की थी। एक खरगोश की रक्षा के लिए तो वीस पहर . . _ तक पांव ऊंचा रख कर अपने शरीर का ही वलिदान कर दिया ... था । इसी से मनुष्य-जन्म, राजसी वैभव की प्राप्ति हुई है और .. .. अन्त में तू संयम ले सका है । यदि जीव-रक्षा में पाप होता तो . भगवान स्वयं उस की महिमा क्यों गाते ? इस सम्बन्ध में तेरहपन्थी लोग कहते हैं कि मेघकुमार ने हाथी के भव में खरगोश को नहीं मारा था, इसी से उस को मनुष्य जन्म आदि मिला । परन्तु हाथी के मण्डल में जो बहुत से जीवों ने आ कर आश्रय लिया था, im ... एतेहिं मुणी सयणहि, समणासी य तेरस-वांसे । . . . राईदियं पि जयमाण, अप्पमत्त समाहिए झाति ।। ...-प्रा० अ० ९, उ० २.
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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