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________________ ७८२....... ...... ...... प्रश्नों के उत्तर उदाहरण से समझिए । - मान लीजिए ।.एक साधु ने एक महीने को तपस्या कर रखी है। साधु को धर्म का ज्ञान है और वह जानता है कि समभावपूर्वक . कष्ट सहन करने से कर्म की निर्जरा होती है । अतः समभाव से .. वह तपोजन्य कष्ट सहन कर रहा है। उस को जब तक याहार नहीं मिलता तब तक उसके कर्म की.महान् निर्जरा हो रही है। अपने पूर्वसंचित कर्मों के कर्जे को वह उतार रहा है । आखिर उस .. के पारने का दिन आ गया । वह पारना. लेने चला । तव' "कर्म -. ऋण चुकाते हुए को अन्तराय देना पाप है" इस मान्यता वाले .. व्यक्ति ने सोचा-आहार मिलने से तपस्वी मुनि को हो रहो कर्म निर्जरा रुक जाएगी । ऐसा विचार कर वह स्वयं भी मुनि को पा... रने के लिए आहार नहीं देता तथा औरों से भी कह देता है कि मुनि के कर्म की होती हुई निर्जरा को मत रोको । तो उस का यह कार्य उचित होगा या अनुचित ? इसके अलावा, जो लोग उस तपस्त्री मुनि को आहार देंगे, उनको पाप तो नहीं होगां? जिस तरह साधु बकरे और कसाई दोनों का पिता है उसी तरह शास्त्रानुसार श्रावक भी साधु का पिता है । जिस तरह साधु बकरे का कर्म ऋण चुकाने से नहीं रोकता, उसी प्रकार श्रावक को भी यही उ- चित है कि वह कर्म-ऋण चुकाते हुए साधु को न रोके । ऐसा .: होते हुए भी यदि कोई. श्रावक साधु को आहार देकर उस कर्म-: ऋण चुकाने से रोकता है तो उसको भी वैसा ही पाप हुआ या . नहीं,जैसा पाप कर्म-ऋण चुकाते हुए वकरे को बचाने से हो सकता है ? पर शास्त्र कहता है और स्वयं. तेरहपन्थी साधु कहते हैं कि .. = . ' साधु को आहार देना धर्म है। यदि साधु को आहार पानी देना ....... धर्म है तो मरते हुए जीव कों वचाना अथवा कष्ट पाते हुए जीव
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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