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________________ चतुर्दश अध्याय - आज एक या दो नहीं, करोड़ों की संख्या में ऐसे यंत्र आकाश में .. - उडारियां ले रहे हैं। इन की गति प्रति घण्टा चार-चार हजार माइल है और लाखों कोस की यात्रा तय कर लेते हैं ये । दूसरी ओर विज्ञान ने चिकित्सा के क्षेत्र में जो उन्नति की है, वह भी . चिन्तनीय है । डाक्टर लोग एक व्यक्ति का रक्त दूसरे व्यक्ति में ... - दाखिल कर देते हैं एक फेफड़ा (Lungs) निकालकर दूसरा लगा देते हैं । नारियों के गर्भाशय निकालकर उन्हें ठीक करके पुनः वहीं . रख देते हैं । यदि ये साधारण बुद्धि के मनुष्य ऐसा कर सकते हैं ___तो अनेकों दिव्य शक्तियों के स्वामी देवताओं के लिए गर्भहरण ... कर देना कैसे असम्भव कहा जा सकता है ? फिर स्थानकवासी परम्परा तो स्वयं इसे आश्चर्य (अनन्त काल के अनन्तर होने वाली ...अशुभ कर्मजन्य घटना) कहती है और भगवान महावीर के एक पूर्वकृत अशुभ कर्म का अशुभ फल मानती है। . - श्री मदन कुमार मेहता द्वारा अनुवादित श्री भगवती सूत्र (हिन्दी)की भूमिका में श्री मोहनलाल बांठिया ने इस सम्बन्ध में बहुत सुन्दर ऊहापोह किया है । वे लिखते हैं कि भगवान वर्धमान महावीर . के जन्म समय की गर्भ-स्थानान्तरण की घटना को लेकर बहुत कुछ .... आक्षेप हुए हैं और कहा गया है कि यह असम्भव जैसी बात जैन .. भगवान के जीवन को अन्य धर्मों के भगवानों के जीवन की तरह चमत्कारमय बनाने के लिए. ही पश्चाद्वर्ती आचार्यों ने जैन शास्त्रों में मिलादी है । जैन-शास्त्रों में वर्णित गर्भस्थानान्तरण की घटना में सरल. बात (या प्रश्न) यह है कि क्या एक स्त्री के गर्भाशय से गर्भजोव को पक्व या अपरिपक्व अवस्था में निकाल कर अन्य स्त्री के गर्भाशय में आरोपित किया जा सकता है ? और वह आरोपित '.. बीज फिर स्वाभाविक रूप से पेदा हो सकता है ? आधुनिक वैज्ञा- ..
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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