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________________ चतुर्दश अध्याय - ७३५ . व्यक्ति को धर्म सुनाना चाहिए; चाहे, वह कैसा भी हो । वैदिकपरम्परा के उक्त प्रभाव के कारण ही दिगम्बर परम्परा की मान्यता बन गई है कि शूद्र की मुक्ति नहीं हो सकती है । प्राध्यात्मिक दृष्टि से शूद्र आगे नहीं वढ़ सकता है, किन्तु स्थानकवासी परम्परा इस बात में विश्वास नहीं रखती है। इस का विश्वास है कि प्रत्येक भव्य जीव मुक्ति में जा सकता है, शूद्र के 1 : ". वास्ते मुक्ति का द्वार वन्द नहीं है । मोक्ष के साधन भूत सम्यग् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को जीवन में लाने वाला प्रत्येक व्यक्ति मोक्ष के द्वार खोल सकता है। फिर चाहे वह शूद्र हो, या वैश्य तथा ब्राह्मण हो या क्षत्रिय । Pe वस्त्रसहित मुक्ति स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि मनुष्य यदि वस्त्रों का सर्वथा परित्याग कर दें तो यह उसकी साधना की पराकाष्ठा है, किन्तु यदि वह वस्त्रों का विल्कुल त्याग नहीं कर पाता, तथापि वह सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के महापथ पर चलकर ग्राध्यात्मिक उन्नति कर सकता है, पहले गुणस्थान से ऊपर उठा हुआ अन्त में, वह चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त कर सकता है । दूसरे शब्दों में वस्त्रों में रहता हुआ भी अनासक्त बनकर मोक्ष का अधिकारी वन सकता है। पर दिगम्बर परम्परा की ऐसी मान्यता नहीं है । उस के विश्वासानुसार मनुष्य जब वस्त्रों का सर्वथा त्याग कर देता है, बिल्कुल दिगम्बर (नग्न) बन जाता है, 4. जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थइ, जहा तुच्छस्स कत्थई, तहा पुण्णस्स कत्थई । -- प्राचारांग अ० २ उद्दे०६
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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