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________________ चतुर्दश अध्याय ७३३ -" y प्राततायी लोगों से दीन, दुःखी की रक्षा का, तथा देश, जाति की सुरक्षा का उत्तरादायित्व क्षत्रियों पर डाला गया था । अन्न, वस्त्र आदि सभी जीवनोपयोगी पदार्थों की व्यवस्था करने की सेवा वैश्यों को दी गई थी । तथा समाज सेवा का पुण्य कर्म शूद्रों ने संभाला था । इस तरह समाज को चार वर्गों में बाँट कर समाज को बहुत सुन्दर व्यवस्थित रूप दे दिया था । उस समय सब लोग अपना-अपना कर्तव्य समझ कर अपने-अपने उत्तरदायित्व को निभाने का प्रयास करते थे, किसी में उच्चता या नीचता के भाव नहीं थे । श्रर जन्म से कोई ब्राह्मण होता है, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र भी कोई जन्म से होता है, ऐसी भावना भी किसी में नहीं पाई • जाती थी। सभी जाति की व्यवस्था कर्म से किया करते थे, जो जैसा कर्म करना चाहता है या करता है, उसे उसी जाति का या वर का कहा जाता था। कर्मणा जाति हो उस युग का जातिवाद था । जन्म से जातिवाद को कोई स्थान नहीं था । किन्तु जब वैदिक परम्परा ने जोर पकड़ा तब इन में उच्चता तथा नीचता की भावना ने जन्म लिया । इस परम्परा ने जन्म से जाति को प्राधान्य देकर कर्म से जाति के पुनीत सिद्धान्त को निस्तेज बना दिया । भगवान महावीर के युग में यह वैदिकी भावना बहुत जोरों पर थी । जन्मना जातिवाद के प्रभुत्व के कारण ही उस समय शूद्रों की बड़ी दुर्दशा थी, इन की छाया भी त्याज्य समझी जाती थी । अन्त में, भगवान महावीर ने जन्मना जातिवाद के सिद्धान्त को समाप्त किया और इस के लिए उन्होंने अपनी समस्त शक्ति होम दी । वैदिक परम्परा से उन्हें खूब लोहा लेना पड़ा था किन्तु अन्त में, इन्हें विजय की प्राप्ति हुई । कर्मणा जातिवाद के सिद्धान्त को इन्होंने जीवनदान दिया और सर्वत्र उसकी प्रतिष्ठा कीं । • •
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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