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________________ ७१६. चतुर्दश अध्याय üürimini रात्रि को भी शौच जाने की स्थिति बन जाती हैं। किन्तु उस समय वस्त्र आदि द्वारा सफाई कर के सूर्योदय होने पर जल द्वारा शुद्धि ___ कर लेनी चाहिए और जब तक शुद्धि न कर ली जाए तब तक '. शास्त्रस्वाध्याय आदि कोई भी आध्यात्मिक अनुष्ठान नहीं करना चाहिए । शौच जाने के अनन्तर ही यदि शुद्धि करने का अवसर न हो, तो इस का यह अर्थ नहीं होता कि व्यक्ति सदा के लिए अशुद्ध ही हो जाता हैं। कई बार जीवन में ऐसे प्रसंग आते हैं कि पास में : पानी का सर्वथा अभाव होता हैं, और शौच जाना पड़ता है । तथा शौच जाकर जब पानी मिल जाता है, तो उस के द्वारा शुद्धि कर ली जाती है । औप कह सकते हैं कि ऐसा प्रसंग तो आकस्मिक होता है, तो फिर इस का उत्तर स्पष्ट है कि शारीरिक विकार भी तो आकस्मिक ही हुआ करता है । नियमित और परिमित भोजन करने वाला व्यक्ति सदा तो असमय में शौच नहीं जाता। उसे भी तो किसी आकस्मिक शारीरिक विकार के कारण ही ऐसा करना पड़ता है । अंतः आकस्मिक शारीरिक विकार के कारण यदि रात्रि को शौच जाना पड़े तो वस्त्र आदि द्वारा ही सफाई कर लेनी चाहिए । रात्रि में जल का सेवन तो कदापि नहीं करना चाहिए। __.. यदि रात्रि को पानी रखा जाएगा तो साधु का रात्रिभोजन विर: मणं व्रत भंग हो जाएगा। अपने व्रत का भंग करना किसी भी ..तरह ठीक नहीं है। क्योंकि यदि नियम तोड़ने की परम्परा चालू . .. ' wimmmmms immmmmmmmmmmmmmmmmm *"रात्रिभोजन-विरमणे" साधु का छठां व्रत होता है । इस का पालक साधु रात्रि को किसी भी प्रकार के भोजन का सेवन नहीं कर . सकती, और नहीं अन्न-जल आदि खाद्य तथा पेय सामग्री अपने पास रख सकता है। " AANA
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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