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________________ ६७२ प्रश्नों के उत्तर मग्री की अपेक्षा रखते हैं । ऐतिहासिक सामग्री के प्रभाव में इस सम्बन्ध में हम कुछ नहीं कह सकते। जहां इतिहास मौन हो जाता A है तो वहाँ लेखक को भी मौन साधना पड़ता है । ग्रतः विवशता से भगवान महावीर से पूर्व की स्थानकवासी परम्परा की ऐतिहासिक स्थिति पर कुछ न कह कर भगवान महावीर के बाद में स्थानकवासी परंम्परा किस तरह से चली आ रही है और ग्राज तक उस का प्रवाह अविच्छिन्न धारा से कैसे प्रवाहित होता चला श्रा रहा है ? इसी सम्बन्ध में कुछ कहा जाएगा । '' स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि भगवान महावीर से लेकर आज तक कोई भी ऐसी घड़ी नहीं रही जब कि मध्य में स्थानकवासी परम्परा का विच्छेद हो गया हो। इस परम्परा के साधु-मुनिराज सदा संसार को अहिंसा, सत्य का उपदेशामृत पिलाते रहे हैं और भगवान महावीर से लेकर आज तक भगवान महावीर की साधु- वंश परम्परा लगातार चली आ रही है। यह वंश, परम्परा कहीं भी कभी खण्डित नहीं होने पाई है । यह सत्य है कि साधु-साध्वियों की अधिकता और न्यूनता तो हो सकती । कभी साधुनों की संख्या बढ़ गई और कभी वे अल्पसंख्यक हो गए, ये सब बातें संभव हो सकती हैं, किन्तु ऐसा कोई समय नहीं ग्राया, जब कि स्थानकवासी मुनिराजों की परम्परा की कड़ी भंग हो गई हो, साधु-जीवन का कभी सर्वथा अभाव हो गया हो, महावीर से लेकर आज तक कोई ऐसा समय नहीं आने पाया । स्थानकवासी परम्परा के विश्वास के अनुसार भगवान महावीर का धर्मसिहासन कभी खाली नहीं रहा। उसे कोई न कोई पूज्य श्राचार्य'देव विभूषित करते ही रहे हैं। वह धर्म - सिहासन पूर्व की भांति आज भी किसी न किसी धर्माचार्य द्वारा प्रासेवित तथा परिपा
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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