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________________ ६४४ प्रश्नों के उत्तर जीने दो" (Live and let live) के सर्वोच्च सिद्धान्त की शीतल : छाया तले सानन्द जीवन व्यतीत करने का पवित्र ढंग सीखा । भगवान ने अपने जीवन-काल में धार्मिक और सामाजिक सभी क्षेत्रों में लोगों को एक अपूर्व और एक नया ही दृष्टिकोण दिया था, उनके जीवन का एक-एक पग निराला था, और वह आदर्शता से ओतप्रोत था। भगवान महावीर गहस्थ में रहे तो भी : शान के साथ,और जनगण के मान्य अध्यात्म नेता बने तो भी शान . के साथ । अथ से अन्त तक वे श्रादर्शता का ही विलक्षण उपहार . संसार को अर्पित करते रहे। कभी अपने जीवन में वे लड़खड़ाए नहीं, एक सफल सैनिक की भान्ति वे सदा प्रगति पथ पर बढ़ते ही चले गएं । अन्त में,पावापुरी की पुण्य भूमि में उस महामहिम क्रांतिकारी महामानव का निर्वाण होता है, तीर्थंकर भगवान महावीर .. का मोक्ष होता है। कार्तिक मास की कृष्णाः अमावस्या का .. दीपमाला पर्व (दीवालो.) इस जननेता भगवान महावीर के पवित्र निर्वाण का एक पुण्यमयः मधुर स्मारक है, जिसे भारत के . कोनेकोने में बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। .... महावीर के जीवन पर बहुत कुछ लिखा व कहा जा सकता है, . . परन्तु सभी कुछ लिखना इस समय हमारा लक्ष्य नहीं है। यहां तो . केवल भगवान महावीर की जीवन-झांकी ही पाठकों के सामने चित्रित करना चाहते हैं । विशेष के जिज्ञासुओं को स्वतन्त्र रूप से भगवान महावीर का जीवन-चरित्र देखना चाहिए । संक्षेप में अपनी बात कह दू भगवान महावीर जैन-धर्म के. चौबीसवें तीर्थंकर थे,.. आप की जन्म-भूमि वैशाली (कुण्डलपुर), पिता महाराजा सिद्धार्थ, .:. xदीपमाला पर्व के सम्बन्ध में इस पुस्तक के "जैन-पर्व" नामक : अध्याय में प्रकाश डाला गया है, पाठक उसे देखने का कष्ट करें :
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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