SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - प्रश्नों के उत्तर उठा कर दूर फेंक दिया । सर्प का भयंकरः फरणाटोप भी इन को . भयभीत नहीं कर सका । बस यहीं से इनके जीवनोद्यान में वीरत्व : के कुछ-कुछ अकुर दिखाई देने लग गए थे। और यही कुर इन के भावी साधनामय जीवन में एक महान वृक्ष के रूप में परिणत हो गए । तथा । इन्हें महावीर जैसे महामहिम नाम से विभूषित कराने में सफल हुए। माता-पिता का रखा वर्धमान नामसाधना-. काल में इन के लोमहर्षक संकटों में ज़रा भी विचलित न होने के कारण, तथा मेरु की भांति निष्प्रकम्प रहने के कारण महावीर के रूप में बदल दिया गया । इसीलिए ये वर्धमान की अपेक्षा महावीर के नाम से ही प्राध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक जगत में विख्यात हैं। ... महावीर निर्भीकता. और वीरता के तो स्रोत थे ही, किन्तु . साथ. में करुणा के भी सागर थे। किसी दुःखी और व्याकुल. प्राणी .. को देखकर महावीर का मानस पसोज उठता था। इतिहास कहता। - है कि महावीर के युग में यज्ञों का बहुत जोर था। यज्ञों में पशुओं : - और मनुष्यों का वलिदान वहुतायत से होता था । बेचारे मूक पशु और असहाय मनुष्य धर्म का नाम लेकर आग में फूकः दिए जाते . थे, और उस पर भो 'वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति, यह कह कर । उस पाप-कृत्य को अहिंसा का रूप दिया जाता था । करुणा-स्रोत : : भगवान महावीर ने ये सवं हिंसा-पूर्ण यज्ञ अपनी आंखों से देखें। तो ये सिहर उठे, बस फिर क्या था, राजपुत्र महावीर का हृदय : करुगा के मारे रो उठा । अन्त में,इन्होंने यज्ञ में जल रहे प्राणियों : की रक्षा करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। धर्म के नाम पर किए.. जाने वाले किसी भी अनुष्ठान का विरोध करना, उस समय मृत्यु ... को निमंत्रण देना था, किन्तु महावीर तो महावीर ही थे। उन्होंने... इस भयं को तनिक. चिन्ता नहीं की । ३० वर्ष की भरी जवानी
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy