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________________ . प्रश्नों के उत्तर ..को नया मोड़ देता है। उसने हजारों-लाखों परिवारों को दुर्व्यसनों से : मुक्तकिया है, सादगी एवं शिष्टता से रहना सिखाया है, त्याग और तप के महत्त्व को बताया है । इस साधु को भिक्षा वृत्ति सिर्फ अपना पेट भरने के लिए नहीं, प्रत्युत व्यक्ति, परिवार, समाज, देश एवं विश्व के हित एवं कल्याण को लिए हुए है। इसलिए इस वृत्ति को सर्वसम्पत्करी-भिक्षा कहा है। ऐसो भिक्षा साधु एवं गृहस्थ दोनों के .. जीवन का विकास करतो है । शास्त्रकारों ने भी कहा है कि ऐसे महान् साधक का तथा बिना किसी कामना एवं स्वार्थ के देने वाल सदगृहस्थ का मिलना दुर्लभ है। प्रवल पुण्य से ही ऐसे साधक एवं सद्गृहस्थ का संयोग मिलता है और वह दोनों के जीवन विकास का कारण है। देने और लेने वाला दोनों सुगति को प्राप्त होते हैं ।* इस . . तरह साधु को भिक्षा सत्र के कल्याण की भावना को लिए हुए है। . .... २-पौरुषघ्नी भिक्षा- एक सशक्त व्यक्ति: साधुता के अभाव। . में केवल बिना मेहनत एवं परिश्रम किए ही आराम से खाने rवं. मौज-मजे करने के लिए साधु का भेष पहन कर भिक्षा मांगता है... .. तो वह पौरुषन्नी भिक्षा है.। वह उसके पुरुषार्थ को समाप्त करने ... वाली है, जीवन में आलस्य एवं विकारों को बढ़ाने वाली है । क्योंकि . उसके जीवन में साधना का अभाव है, त्याग-तप का प्रकाश दीप.. बझा पड़ा है । अतः दिन भर कोई काम न होने से मन में विकार... भावना एवं बुरे विचार चक्कर काटने लगेंगे और वह उनके प्रवाह में ... बह कर दुष्प्रवृत्तियों की ओर मुड़ जायगा । हजारों-लाखों पंडे-पुजा* दुल्लहा मुहांदाई, . मुहाजीवी विदुल्लहा, .. wwmom: मुहादाई-मुहाजीवी, दोविगच्छन्ति सुगइ।. . .. दशवकालिक सूत्र, अ. ५, उ. १, गाथा-१००
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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