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________________ प्रश्नों के उत्तर ५ - शिकार, ६-चोरी, चोर ७ परस्त्रीगमन । इन कुव्यसनों से होने वाले नुकसान को बतलाते हुए गौतम ऋषि ने गौतम कुलक में कहा है AAP ३६४ “जूए पसत्तस्स धस्स नासो, मंस-पसत्तस्स दयावणासो | वेसा-पसचस्स कुलस्स नासो, मज्जे पसतम्स सरीरणासी ॥ हिंसा-पसचरस सुधम्म-नासो, चोरी- सत्तस्स सरीरणासी । वहां परित्यसु पसंतयस्तः सव्वस्त नासो ग्रहमा गई य ॥ " : अर्थात् -- जुए में प्रासक्त व्यक्ति के घन का नाश होता है। मांसाहारी मनुष्य के हृदय में दया करुणा नहीं रहती । वेश्या में अनुरक्त रहने वाले व्यक्ति के कुल का नाश होता है. इज्जत का नाश होता है। शरावी व्यक्ति का अपयश फैलता है। हिंसा कर्म में प्रवृत्त मनुष्य के हृदय में दया का झरना नहीं बहता । चोरी करने वाला व्यक्ति कभी कभी जोवन से हाथ धो बैठता है और परस्त्री के साथ विषय-वासना का सेवन करने वाला मानव अपना सर्वस्व गंवा बैठता है । साता कुव्यसन इन्सान को हैवान बनाने वाले हैं, नीच गति की ओर ले जाने वाले हैं । अतः मनुष्य को सातों कुव्यसनों से बच कर रहना चाहिए । नीचे की पंक्तियों में इन दोपों पर जरा विस्तार से विचार करेंगे १ - जुआ जुम्रा एक प्राध्यात्मिक दूषण है। इस से आत्म- गुणों में हास C होता है । यह ग्राभ्यात्मिक, नैतिक, व्यावहारिक एवं आर्थिक सभी दृष्टियों से जीवन का पतन करने वाला है । जीवन को बाह्य और अभ्यांतर शांति का विनाशक है। मानव को दुःख के अथाह सागर में "
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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