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________________ विषय पृष्ठ पृष्ठ विषय है या बचाना भी ? पुण्य है या पाप ? पिता की सेवा से पुण्य होता ८१० स्थानकवासी और तेरह - ८११ है या पाप ? पन्थ में आचार-विचार का अहिंसा का अर्थ न मारता ११० अन्तर जैन पर्व - पन्द्रहवाँ अध्याय ८१५ महावीर जयन्ती पर्व का महत्त्व पर्व के प्रकार अक्षय तृतीयां महापर्व पर्यूषण महापर्व सम्वत्सरी पार्श्व जयन्ती (च) ८१६ वीर निर्वाण ( दीवाली) ८१९ भय्या दूज =२२. रक्षा-वन्धन ८२५ आचार्य - जयन्ती ८२८ भाव पूजा - सोलहवां अध्याय स्थानकवासी समाज और ८४२ मूर्तिपूजा द्रव्य पूजा के दोष ८४३ मूर्ति को देखकर मूर्तिमान ६४९ का बोध होता है मूर्ति जीवन-निर्मात्री सामग्री ८५२ की स्मारिका है। जड़ में चेतन का श्रारोप ८५६ करना मूर्ति से मन टिकता है ? भगवान की मूर्ति से अच्छे विचार बनते हैं । ८५७ ८६० ८२९ ८३२.. ८३५ ८३७ ८३८ मूर्ति का उद्देश्य क्या है ? ८६२ खुदाई में पुरानी मूर्तियां ८६४ मिलती हैं चित्रित दीवार देखने का ८६५ निषेध क्यों ? साधुत्रों के चित्र वन्दनीय ८६६ हैं ? देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा और स्थानक - ८६६ वासी परम्परा देवपूजा और सम्यक्त्व ८७०
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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