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________________ प्रश्नों के उत्तर mari mmmmmmmam चना-विचारना एवं समझना है। आज अनेको व्यक्ति जनों को हिन्दूधर्म के अन्तर्गत समझने की भूल कर बैठते हैं। जनगणना के समय का मेरा निजी अनुभव है कि कई अधिकारी वर्म के खाने मे जैन-धर्मावलम्वी को हिन्दूधर्म मे लिख लेते थे। कई बार कहने पर भी वे सरलता से समझ ही नही पाते थे कि जैन धर्म हिन्दूधर्म से अलग धर्म है । इससे भी अधिक दुःख हमे यह जान कर हुआ कि कई जैन अपने आप को हिन्दू लिखाते थे। यह उनके अज्ञान का परिचायक ही है। मैं इस प्रकरण मे इस प्रश्न पर ज़रा स्पष्टता से प्रकाश डालने का प्रयत्न करु गा कि जैन हिन्दू है या उनसे भिन्न ? हिन्दू शब्द के आज तीन अर्थ हमारे सामने है। एक भौगोलिक, दूसरा धार्मिक एव तीसरा राष्ट्रीय। भौगोलिक दृष्टि से सिन्धु नदी के इस और वसने वाले लोग सिन्यु कहलाते थे । जव फारसी इधर पाए तो वे उन्हे हिन्दू कहने लगे । क्योकि फारसी मे 'स'का उच्चारण 'ह' होता है। इस से पहले पहल सिन्धु नदी के मैदान मे बसने वाले लोगो के लिए हिन्दू शब्द का प्रयोग शुरू हुया और धीरे - धीरे सारे भारतोयो के लिए इसका प्रयोग होने लगा। इसी के आधार पर भारत को भी हिन्दुस्तान के नाम से पुकारने लगे। __कुछकाल के बाद वैदिक परपरा ने हिन्दू शब्द को अपना लिया। फलत वैदिक परम्परा मान्य क्रियाकाण्ड करने वाले व्यक्ति को हिन्दू कहने लगे। इस तरह हिन्दू शब्द एक सम्प्रदाय-विशेष के लिए प्रयुक्त होने लगा। जब देश मे राष्ट्रीयता का विकास हुआ तो उस के साथ - साथ हिन्दू शब्द के अर्थ का भी विस्तार हो गया। राष्ट्रीय दृष्टि से हिन्दू वह है, जो हिन्दुस्तान को अपनी मातृभूमि मानता है, जो राष्ट्र के प्रति इमानदार है और अपना राष्ट्रीय दायित्व निभाता है। भौगोलिक एव राष्ट्रीय परिभाषा के अनुसार जैन भी हिन्दू है।
SR No.010874
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages385
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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