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________________ पन्नरसम सतं ७०२ भुयपरिसप्पविहाणाइ भवति, त जहा-गोहाण, नउलाण, जहा पण्णवणापए जाव' जाहगाण चउप्पाइयाण, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो' °उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव' भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति।। सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे काल ° किच्चा जाइ इमाइ उरपरिसप्पविहाणाइ भवति, त जहा–अहीण, अयगराण, प्रासालियाण, महोरगाण, तेसु अणेगसयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति। सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे काल ° किच्चा जाइं इमाई चउप्पदविहाणाइ भवति, त जहा–एगखुराण, दुखुराण, गडीपदाण, सणहप्पदाण, तेसु अणेगसयसहस्स' खुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जोभुज्जो पच्चायाहिति। सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे काल ° किच्चा जाइ इमाइं जलयरविहाणाइ भवति, त जहा-मच्छाण, कच्छभाण जाव' सुसुमाराण, तेसु अणेगसयसहस्स खुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति । सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे काल ° किच्चा जाइ इमाई चउरिदियविहाणाइ भवति, त जहा-अधियाण, पोत्तियाण, जहा पण्णवणापदे जाव गोमयकीडाण, तेसु अणेगसय सहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेवतत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायाहिति। सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे काल ° किच्चा जाइ इमाइ तेइदियविहाणाइ भवति, त जहा-उवचियाण जाव' हत्यिसोडाण, तेसु अणेग" सयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भज्जो पच्चायाहिति ।। सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे दाहवक्कतीए कालमासे काल ° किच्चा जाइ इमाइ बेइदियविहाणाइ भवति, त जहा-पुलाकिमियाण जाव" समुद्दलिक्खाण, तेस १. प०१। ७. स. पा०-अणेगसयसहस्स जाव किच्चा। २ स० पा०—सेस जहा खहचराण जाव ८ प०१। किच्चा। 8 स० पा०-अरोगसय जाव किच्चा। ३. स० पा०-अणेगसयसह जाव किच्चा। १०. प० १। ४. सणहप्फदाण (अ, ता, स)। ११ स० पा०-अरणेग जाव किच्चा । ५ स० पा०-अणेगसयसहस्स जाव किच्चा। १२. प०१।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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