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________________ ५४४ उवचिणाइ ? एव चेव जाव' अणुपरियट्टइ || २४ मायवसट्टे' ण भते । जीवे कि बधइ ? कि पकरेइ ? कि चिणाइ ? कि उवचिणाइ एव चेव जाव' अणुपरियट्टइ ॥ ? २५ लोभवसट्टे ण भते । जीवे कि वधइ ? कि पकरेइ ? कि चिणाइ ? कि उवचिणाइ १ एव चेव जाव' ० ग्रणुपरियट्टा || २६. तए ण ते समणोवासगा समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतिय एयमट्ट सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया ससारभउव्विग्गा समण भगव महावीर वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता जेणेव सखे समणोवासए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सख समणोवासग वदति नमसति, वदित्ता नमसित्ता एयमट्ठ सम्म विणएण भुज्जो-भुज्जो खामेति । तए ण ते समणोवासगा ' सिणाइ पुच्छति, पुच्छित्ता ग्रट्टाइ परियादियति, परियादियित्ता समण भगव महावीर वदति नमसति, वदित्ता नमसित्ता जामेव दिस पाउन्भूया तामेव दिस पडिगया || २७. भतेति । भगव गोयमे समण भगव महावीर वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता एव वयासी - पभू ण भते । सखे समणोवासए देवाणुप्पियाण प्रतिय "मुडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारिय पव्वइत्तए ? भगवई नो इणट्टे समट्ठे । गोयमा । सखे समणोवासए वहूहि सीलव्वय-गुण- वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं ग्रहापरिग्गहिएहि तवोकम्मेहि अप्पाण भावेमाणे बहूइ वासाइ समणोवासगपरियाग पाउणिहिति, पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए प्रत्ताण भूसेहिति, भूसेत्ता सद्वि भत्ताइ ग्रणसणाए छेदेहिति, छेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे काल किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ ण प्रत्येगतियाण देवाण चत्तारि पलिप्रोवमाइ ठिती पण्णत्ता । तत्थ ण सखस्स वि देवस्स चत्तारि पलिप्रोमाइ ठिती भविस्सति ॥ २८ सेण भते । सखे देवे ताम्रो देवलगाओ उक्खरण भवक्खएण ठिइक्खएण अणतर चय चइत्ता र्काहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति ? गोयमा | महाविदेहे वासे सिज्झिहिति वुज्झिहिति मुच्चि हिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाण° ग्रत काहिति ॥ २६ सेव भते । सेव भते ! त्ति जाव विहरइ ॥ १. भ० १२।२२ । २ मायावयट्टे (व, म) 1 ३. भ० १२/२२ । ४. भ० १२ २२ । ५ स० पा० – सेस जहा आलभियाए जाव पडिगया । ६. सं०पा०-सेस जहा इसिभद्दपुत्तस्स जाव अत । ७ भ० ११५१ ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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