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भगवई
नदीथ्रो पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दव्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेदि' रएति, रएत्ता सरएण ग्ररणि महेइ, महेत्ता रिंग पाडेइ, पाडेत्ता प्ररिंग सधुक्केइ, सधुक्केत्ता समिहाकट्ठाइ पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अग्ग उज्जालेइ, उज्जालेत्ता " अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तगाइ समादहे,” [त जहा -
सकह वक्कल ठाण,
सिज्जाभड कमंडलु ।
दडदारू तहप्पाण, अहे ताइ समादहे || १ || ] ' महुणा य घएण य तदुलेहि य प्रग्गि हुइ, हुणित्ता चरु साहेइ, साहेत्ता बलिवइस्सदेव' करेइ, करेत्ता प्रतिहिपूयं करेइ, करेत्ता तो पच्छा अप्पणा ग्राहारमाहारेति ॥
६५ तए ण से सिवे रायरिसी दोच्च छट्ठक्खमण उवसपज्जित्ताण विहरइ ॥ ६६ तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगसि प्रयावणभूमीश्रो पन्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता " वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-सकाइयग गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणग दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थिय अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेस त चेव जाव' तम्रो पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ॥ ६७. तए ण से सिवे रायरिसी तच्च छट्ठक्खमणं उवसपज्जित्ताण विहरइ ॥ ६८ तए ण से सिवे रायरिसि तच्चे छट्ठक्खमणपारणगसि आयावणभूमी
पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-सकाइयग गिण्हइ, गिण्हित्ता पच्चत्थिम दिस पोक्खेइ, पच्चत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थिय अभिरक्खउ सिवं रायरिसि, सेस त चेव जाव' तम्रो पच्छा अप्पणा श्राहारमाहारेइ ॥
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६६ तए गं से सिवे रायरिसी चउत्थ छुट्ठक्खमण उवसपज्जित्ताण विहरइ ॥ तए ण से सिवे रायरसी चउत्थे छट्ठक्खमण पारणगसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-सकाइयग गिण्हइ, गिहित्ता उत्तरदिस पोक्खेइ,
१. वेति ( अ, क, म, स ) 1
२ यावेड (ता) |
३ असो कोष्ठकवर्ती पाठो व्याख्यांग. प्रतीयते ।
४ वलिविस्सदेव ( अ, क, ता), वलि विस्सदेव (व), वलिविन्सादेव (म ), वलिविइस्सदेव (स) ।
५. स० पा० एव जहा पढमपारणग नवर । ६. भ० ११।६४ ।
७ स० पा०-सेस तं चैव नवर |
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भ० ११।६४ ।
६ स० पा० - एव त चेव नवर ।