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________________ ४३८ भगवई सेहि, मासद्धमासखमणेहि विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाण भावेमाणी बहूई वासाइ सामण्णपरियाग पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए ग्रत्ताण भूसेइ, भूसेत्ता सट्ठि भत्ताइ अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता चरमेहि उस्सास- नीसासेहि सिद्धा बुद्धा मुक्का परिनिव्वुडा • सव्वदुक्खप्पीणा || जमालि-पदं १५६ तस्स ण माणकु डग्गामस्स नगरस्स पच्चत्थिमे णं एत्य ण खत्तिय कुङग्गामे नाम नयरे होत्था-वण्ण' । तत्थ ण खत्तियकुडग्गामे नयरे जमाली नाम खत्तियकुमारे परिवसइ-ग्रड्ढे दित्ते जाव' बहुजणस्स ग्रपरिभूते, उप्पि पासायवरगए फुट्टमाणेह मुइगमत्थएहि वत्तीसतिवद्धेहि गाडएहि वरतरुणीसपउतेहिं' उवनच्चिज्जमाणे-उवनच्चिवज्जमाणे, उवगिज्जमाणे - उवगिज्जमाणे, उवलालिज्ज माणे-उवलालिज्जमाणे, पाउस - वासारत सरद - हेमंत - वसत- गिम्हपज्जते छप्पि उऊ जहाविभवेण माणेमाणे, काल गालेमाणे, इट्टे सद्द-फरिस - रस-ख्व-गधे पचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ || १५७ तएण खत्तिय कुण्डग्गामे नयरे सिंघाडग - तिक- चउक्क - चच्चर - चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवू हे इ वा जणवोले इ वा जणकलकले इ वा मी इ वा जणुक्कलिया इ वा जणसण्णिवाए इ वा बहुजणो ग्रण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एव भासइ°, एव पण्णवेड, एव परूवेइ, एव खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगव महावीरे आदिगरे जाव' सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए ग्रहापडिरूव' प्रोग्गह योगिन्हित्ता संजमेण तवसा ग्रप्पाण भावेमाणे विहरइ | o त महष्फल खलु देवाणुप्पिया । तहारूवाण रहताण भगवंताण नामगोयस्स वि सवणयाए जहा ओववाइए जाव' एगाभिमुहे खत्तियकुण्डग्गाम नयर मज्झमज्झेण निग्गच्छति', निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुडग्गामे नयरे जेणेव वहुसालए चेइए, तेणेव उवागच्छति एव जहा प्रववाइए जाव" तिविहाए पज्जुवासणयाए पज्जुवासति ॥ १. प्रो० सू० १ । - २. भ० २।६४ । ३. णाणाविहवरतरुणी ० ( अ, व, स ) । ४. उड्डू (अ), उदू (ता, व, स ) । ५. स० पा०—चच्चर जाव बहुजरगसद्दे इ वा १०. ओ० सू० ५२, ६६ ॥ जाव एव । ६ ओ० सू० १ε। ७ स० पा० - अहापडिरूव जाव विहरइ | ८. ओ० सू० ५२, वाचनान्तर पृ० १४७ । 8. निग्गच्छइ (क, ता) |
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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