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________________ २६६ भगवई 1 १४९. केवली ण भते । मणूसे जे भविए तेणेव भवग्गहणेण' 'सिज्झित्तए जाव' अंत करेत्तए, से नूण भते । से खीणभोगी नो पभू उट्ठाणेण, कम्मेण, बलेण, वीरिएण, पुरिसक्कार-परक्कमेण विउलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए ? से भते । नूण ? एयमट्ठ एव वयह गोयमा | णो तिणट्टे समट्टे । पभू ण से उट्ठाणेण वि, कम्मेण वि, बलेण वि, वीरिएण वि पुरिसक्कार - परक्कमेण वि प्रणयराइ विपुलाइ भोगभोगाइ भुजमाणे विहरित्तए, तम्हा भोगी, भोगे परिच्चयमाणे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवति ॥ श्रकामनिकरण - वेदणा-पदं १५० जे इमे भते । असण्णिणो पाणा, त जहा - पुढविकाइया जाव' वणस्सइकाइया, छट्टा य एगतिया तसा - एए ण अधा, मूढा, तमपविट्ठा, तमपडल - मोहजालपच्छिन्ना अकामनिकरण वेदण वेदेतीति वत्तव्व सिया ? हता गोयमा । जे इमे प्रसण्णिणो पाणा जाव वेदण वेदेतीति वत्तव्व सिया । १५१. प्रत्थि ण भते ! पभू वि अकामनिकरण वेदण वेदेति ? हता | अत्थि || 1 1 १५२. कहण्ण भते । पभू वि अकामनिकरण वेदण वेदेति ? गोयमा । जेण नो पभू विणा पदीवेणं अधकारसि रुवाइ पासित्तए, जेण नो पभू पुरस्रो रुवाइ अणिज्भाइत्ता ण पासित्तए, जेण नो पभू मग्गो रुवाइ अणवयक्खित्ता ण पासित्तए, जेण नो पभू पास रुवाइ प्रणवलोएत्ता ण पासित्तए, जेण नो पभू उड्ढ रुवाइ प्रणालोएत्ता ण पासित्तए, जेण नो पभू अहे रूवाइ ग्रणालोएत्ता ण पात्तिए, एस ण गोयमा । पभूवि अकामनिकरण वेद वदेति ॥ पकामनिकरण-वेदणा-पद १५३. ग्रत्थि ण भते ! पभू वि पकामनिकरण वेदण वेदेति ? हता प्रत्थि || १५२. कहण्णं भते । पभू वि पकामनिकरण वेदण वेदेति ? I गोयमा ! जे ण नो पभू समुहस्स पार गमित्तए, जेण नो पभू समुद्दस्स पारगयाइ रुवाइ पासित्तए, जेण नो पभू देवलोग गमित्तए, जेण नो पभू देव १. सं० पा० - एव चेव जहा परमाहोहिए जाव महा° । २. भ० १/४४ । ३. भ० १।४३७ ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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