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________________ २७ कार्य-संपूर्ति प्रस्तुत आगम के पाठ-शोधन मे लगभग सवा वर्प लगा । इसमे अनेक मुनियो का योग . रहा । उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्यजा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिप्य मुनि नथमल को है, क्योकि इस कार्य मे अहर्निश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है । अन्यथा यह गुर तर कार्य बड़ा दुरुह होता । इनकी वृत्ति मूलत. योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने मे इनकी मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति मे बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैने इनको इस वृत्ति मे क्रमशः वर्धमानता ही पाई है। इनको कार्य-क्षमता और कर्त्तव्य-परता ने मुझे बहुत सतोष दिया है। मैने अपने सघ के ऐसे शिप्य साधु-साध्वियो के वल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है । अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे शिष्य साधु-साध्वियो के निस्वार्थ, विनीत एव समर्पणात्मक सहयोग से इस वृहत कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान् महावीर की पचीसवी निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी का सबसे वडा सकलन-ग्रन्थ जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५००वा निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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