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________________ भगवई १३२ जलते सयमेव दारुमय पडिग्गहग' करेत्ता विउल 'असण-पाण-खाइम-साइम'२ उवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ नियग-सयण',-सवधि-परियण आमंतेत्ता, त मित्त-नाइनियग-सयण-संवधि-परियणं विउलेण असण-पाण-'खाइम-साइमेण" वत्थ-गध-- मल्लालकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संवधिपरियणस्स पुरओ जेट्टपुत्त कुट्वें ठावेत्ता, त मित्त-नाइ-नियग-सयण-सवधिपरियण जेट्रपुत्त च आपुच्छित्ता, सयमेव दारुमय पडिग्गहग गहाय मुडे भवित्ता पाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए । पव्वइए वि य णं समाण इम एयारूव अभिग्गह अभिगिहिस्सामि-कप्पइ मे जावज्जीवाए छट्ठछ?ण अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं उड्ढ वाहायो 'पगिज्झिय-पगिझिय सूराभिमुहस्स पायावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए, छट्ठस्स वि य ण पारणयसि आयावणभूमीग्रो पच्चोरुभित्ता सयमेव दारुमय पडिग्गहग गहाय तामलित्तीए नयरीए उच्च-नीय-मज्झिमाइ कूलाइ घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्ता सुद्धोदण पडिग्गाहेत्ता तं तिसत्तक्खुत्तो उदएण' पक्खालेत्ता तो पच्छा आहार पाहारित्तए त्ति कटु एवं सपेहेइ, सपेहेत्ता कल्ल पाउप्पभायाए रयणीए जाव" उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते सयमेय दारुमयं पडिग्गहगं करेड, करेत्ता विउल असण-पाण-खाइम-साइम उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता ततो पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइ मगल्लाइ वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणाल कियसरीरे" भोयणवेलाए भोयणमडवसि सुहासणवरगए तेण" मित्त-नाइ-नियग-सयण-सवधि-परिजणेण सद्धि त विउल असणपाण-खाइम-साइम प्रासादेमाणे वीसादेमाणे परिभाएमाणे परिभजेमाणे विहरइ। जिमियभत्तत्तरागए वि य णं समाणे आयते चोक्खे परमसुइन्भूए त मित्त- नाइनियग-सयण-सवधि-° परियण विउलेण असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंधमल्लालकारेण य सक्कारेड सम्माणेइ, तस्सेव मित्त-नाइ"- नियग-सयण-सवधि परियणस्स पुरो जेट्टपुत्त कुटुवे ठावेइ, ठावेत्ता त मित्त-नाइ५. नियग-सयण १. पडिग्गय (अ, म, स)। २. अमरण पाण खाइम साइम (अ, स)। ३ X (क, ता, व, म, न)। ४ खातिमनातिमेण (व, स): ५. कुडुवे (ता)। ६. पाणायामाए (व)। ७. पगमिन्य २ (स)। ८. पारणंसि (म)। ६ दएण (ता, म)। १० भ० २१६६। ११ अप्पमहन्यालकारभूसितसरीरे (ता)। १२ तए ण (अ, ता, व, म, स)। १३ स० पा०-मित्त जाव परियण । १४ स० पाo-नाइ जाव परियणस्स । १५. स० पा०-नाइ जाव परियण ।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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