________________
वीय सत (पडमो उद्देसो)
सव्व पाणाइवाय पच्चक्खामि जावज्जीवाए जाव' मिच्छादसणसल्ल पच्चक्खामि जावज्जीवाए । सव्व असण-पाण-खाइम-साइम-चउव्विह पि आहार पच्चक्खामि जावज्जीवाए । ज पि य इम सरीर इट्ठ कत पिय जाव' मा ण वाइयपित्तिय-सेभिय-सन्निवाइय' विविहा रोगाय का परीसहोवसग्गा फुसतु त्ति कटु एय पि ण चरिमेहि उस्सास-नीसासेहि वोसिरामि त्ति कटु सलेहणाझूसणाझूसिए
भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए काल अणवकखमाणे विहरइ ।। ६६ तए ण से खदए अणगारे समणस्स भगवो महावीरस्स तहारूवाण थेराण अतिए
सामाइयमाइयाइ एक्कारस अगाइ अहिज्जित्ता, बहुपडिपुण्णाइ दुवालसवासाइ सामण्णपरियाग पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अत्ताण झूसित्ता, सठ्ठि भत्ताइ
अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते प्राणुपुव्वीए कालगए। ७० तए ण ते थेरा भगवतो खदय अणगार कालगय जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तिय
काउसग्ग करेति, करेत्ता पत्त-चीवराणि गेण्हति, गेण्हित्ता विपुलाओ पव्वयानो सणिय-सणिय पच्चोरुहति', पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समण भगव महावीर वदति नमसति, वदित्ता नमसित्ता एव वयासी- एव खलु देवाणुप्पियाण अतेवासी खदए नाम अणगारे 'पगइभद्दए पगइउवसते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसपन्ने अल्लीणे' विणीए । से ण देवाणुप्पिएहिं अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पच महन्वयार्णि आरुहेत्ता', समणा" य समणीग्रो य खामेत्ता, अम्हेहिं सद्धि विपुल' पव्वय ० सणिय-सणिय द्रुहित्ता जाव' मासियाए सलेहणाए अत्ताण झूसित्ता, सट्ठि भत्ताइ
अणसणाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते आणुपुत्वीए कालगए। इमे - य से आयारभडए॥ ७१ भतेति | भगव गोयमे समण भगव महावीर वदइ नमसइ, वदित्ता नमसित्ता
एव वयासी-एव खलु देवाणु प्पियाण अतेवासी खदए नाम अणगारे कालमासे काल किच्चा कहिं गए ? कहिं उववण्णे ? गोयमाइ | समणे भगव महावीरे भगव गोयम एव वदासी-एव खलु
१. भ० २१५२।
इति द्विरुक्तमस्ति तेन औपपातिकपाठ एव २ द्रष्टव्य २।५२ सूत्रस्य पादटिप्पणम् ।
समीचीनोस्ति। ३ पच्चोसक्कति (स)।
६ आरोवेत्ता (अ, क, ता, ब, स), पारोहेत्ता ४. अलीणे (क, ब)। ५. औपपातिके (६१, ११६) एतावान् एव ७ समणे (अ, ता, व, म)।
पाठोस्ति । अत्र केषुचिदादर्शषु 'पगइमउए ८ स० पा०-पव्वय त चेव निरवमेस जाव 'पगइविणीए' इति पाठोप्यस्ति तथा 'मिउ- आणुपुत्वीए । मह वसपने भद्दए विपीए' इत्यपि वर्तते। ६, भ० २६, ६६ ।