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________________ १८४ भगवई ५२ सलेस्से ण भते | अचरिमे मणुस्से पावं कम्म किं वधी ०? एव चेव तिण्णि भगा चरमविहूणा भाणियव्वा एव जहेव पढमुद्देसे, नवरं-जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भगा तेसु इह आदिल्ला तिण्णि भगा भाणियन्वा चरिमभगवज्जा । अलेस्से केवलनाणी य अजोगी य--एए तिण्णि वि न पुच्छिज्जति, सेस तहेव । वाणमतर जोइसिय-वेमाणिए जहा नेरइए॥ ५३ अचरिमे ण भते । नेरइए नाणावरणिज्ज कम्म कि वधी-पुच्छा। गोयमा । एव जहेव पाव, नवर-मणुस्सेसु सकसाईसुलोभकसाईसु य पढमवितिया भगा, सेसा अट्ठारस चरमविहूणा, सेस तहेव जाव वेमाणियाणं । दरिसणावरणिज्ज पि एव चेव निरवसेस । वेयणिज्जे सव्वत्थ वि पढम-वितिया भगा जाव वेमाणियाण, नवर-मणुस्सेसु अलेस्से केवली अजोगी य नत्थि ॥ ५४ अचरिमे ण भते ! नेरइए मोहणिज्ज कम्म कि वधी-पुच्छा। गोयमा । जहेव पाव तहेव निरवसेस जाव वेमाणिए । ५५. अचरिमे ण भते | नेरइए आउय कम्म कि बधी-पुच्छा। गोयमा । पढम-बितिया भगा। एव सव्वपदेसु वि । नेरइयाण पढम-ततिया भगा, नवर-सम्मामिच्छत्ते ततियो भंगो। एव जाव थणियकुमाराण । पुढविक्काइय-ग्राउक्काइय-वणस्सइकाइयाण तेउलेस्साए ततिओ भगो। सेसेसु पदेसु सव्वत्थ पढम-ततिया भंगा। तेउकाइय-वाउक्काइयाण सव्वत्थ पढमततिया भगा । वेइदिय-तेइदिय-चरिदियाण एव चेव, नवर-सम्मत्ते अोहिनाणे आभिणिवोहियनाणे सुयनाणे-एएसु चउसु वि ठाणेसु ततिनो भगो । पचिदियतिरिक्खजोणियाण सम्मामिच्छत्ते ततिरो भगो। सेसपदेसु सव्वत्थ पढम-ततिया भगा। मणुस्साण सम्मामिच्छत्ते अवेदए अकसाइम्मि य ततियो भगो, अलेस्स-केवलनाण-अजोगी य न पुच्छिज्जति । सेसपदेसु सव्वत्थ पढमततिया भगा। वाणमतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया । नाम गोय अतराइय च जहेव नाणावरणिज्ज तहेव निरवसेस । ५६ सेव भते । सेव भते ! त्ति जाव विहरइ ॥ १ वीसेसु (अ)। २. कसायीसु (क, म, स)। ३. सेसेसु पदेसु (स)।
SR No.010873
Book TitleJainagmo Me Parmatmavad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashanalay
Publication Year
Total Pages1157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size50 MB
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