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________________ FACE E ER 1.-""3EERIN RSAEमालासराव ( 4 ) विशमापापेत पर कमबरपोपया-पस्म सम्प लियोन कर्यता पचपि रोगी मिपते तपापिन चस्प कर्मचम्भा पुरा म्पमामायामामात् / मन्यस्य तु सारया सुमपि मतो माबमोपात् कर्मचम्पा / पदागमा- ! - उवासिय मियाए इरिया समियस्स संकमहार। बामधिल कलिंगी मरिश सभोममा सा // 1 // नप वस्स समिमिचो पो सहमो विदेसिमो समए / प्रसवमा उपठगेय सम्म माससोचमा // 2 // इत्यादि / तपासमास्पास्पानक धमसियमेव मापापइस सूप में इस विषय का पईन किया गपा कि यदि किसी व्यक्ति से पुम (सम्म) जीपनी मृत्यु हो गई बा किसास स्पस भीष की मृत्यु हो गई तो ऐसे एकाम्त मनकाना चाहिए कि तुम जीप मारने का पोड़ा पाप: और स्पूत गीय मारमें का पात पाप है या स्पून कापोड़ा पाप और सूक्ष्म का पाप है। इस प्रकार बोलने से म्पहार ठीक नही सकता। कारण कि पापकर्म का बम्प सम्म पा स्था गीष के बष पर मिर्मर मातीपातो मौष के तीन पा मन भाषा परी निर्मर है। मतपप मिथर पानिकहा कि रिसा जीव मानो पर रा निर्भर है।पंप पा सासर रोगी की रखा करते करत पदि रोगी की मरयु हो सार साये मासिवय के करन मासेमी मागे जा सकते नारी राज्यशासम में शिक्षा कपात्री रमते ।सो मारिसाहामो पोगपती और परिमा राम मनोयोग से भी हो जाती है। SALEER E YALA EPALI CRE _ -_12 GREE.
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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