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________________ E SIRESERVE L E KEEYEसनासBERESUCCES को विस्थामा तीवधिको विस्थामक पीर मनराका एकस्पान समममा बाहिये / इस लिए कुपोपयुकोने सेही पर सम्पक्व मोरनीया माता। म-पदोप किसे का / .-से एकजीवनामा तरंगों में परिपतवापसी प्रकार तीरों में समान मर्मतराशोमी भी विप सीति करने में और भी पायवाय जी परिचय देने में समर्प इस प्रकार अनेक विषयों में बनापमान होने के कारणभूत दोपको पक्षपोष करते। म-मायोप किसकावे! --से निर्मशमुबई मी मसकारण मसिनका माता से ही सिसो कारप सम्पर पर्गन मै अपस्पपय की वरंग से मसिमता मा बाप उसे मन दोषपाते। म.--मापार रोप किसे करते! -से पर पुरषाप में बीमारी कॉपी: सेही विस सम्पम् परबकेयोते पपी निससे पा मेप। शिम्पमा शिप्पत्पादि प्रम दो से भागार होपाते हैं। म.--मिम मोपलीव पिसेका --मिस कर्म के पाप से भीष की मिम पिसे अर्यात् पी और केमिमिव रोने से पपपपीकास्मार भाताम पूरा कापी मन पूरी तत्वविदोनपरी प्रतस्परविदो। म-मिप्यात मोरनायो / .NE PESHEEमपम
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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