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________________ . एलसBEमानाxBDEER गुणका पूर्ण पात तोमरो परम्बाहमा मागाइयोप उत्पनहो।। मपम कर्म प्राय में एक पिपप को इस प्रकार से फर। तया पर्पन पिपामे विपर्यन मोमीप कहीम मेवर-- 1 सम्यकार मोहनीय कमिभ मोनीय मिम्पास्म मोतीप! सम्परव मोरनीय केमिक यसमिम मोहमीप मर्य विरार पीर मिथ्यास्प मोनीप के मयुर। (1) को (कोद्रप) एमकारा प्रोमिसकेबाने में नया होता है परम्स मम का हिसका मिकामा जाप भोर बाबमापिसे यापा माप तो पर नया नहीं करता। उसी प्रकार मीष को शिव भक्ति परीक्षा में विकास परवाने मिप्यात्व मोहनीय पुरस पत्र में सर्पपाती रस होता मा है। मिसानक बिस्थानक और बास्पामक रस सरंपाठी / - MOST गीष अपने चिराय परिणाम से उन पुरतों के सर्वपाती रस को बढा देता सिर्फ एकस्वामक रस पब माता है, इम पकसानक रसपासे मिप्यत्व मोहनीपपुरों को दी। सम्पाप मोरनीय कापरकर्म गुय होने के कारण सस्वरुचि रूप सम्पकाल में पापा नही पहुंचाता परत इसके उदय से भारम-ससमाष कप भोपामिक सम्परच उपा पापिक सम्पाव होने नही पाता भीर सपम पापों विचारले में का मारती विससे कि सम्पत्व में मसिनता मा गाती है। इसीरोपकारवयापम सम्पपल मोहनीय कामाता है। (२)का माग रायमीर माम भयय ऐसे कोसोर ममान मिभ मोहनीय है।सकसपमेगी SUEEEEEEBायब
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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