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________________ JHASEAXESXxxxnxcseeKERAKEEKEDARKHESAREERIEPARED (43 ) सम्बन्ध होता है। इसी को कर्म कहते हैं तथा कमाँ की मूल प्रकृतियां और 148 उत्तर प्रकृतियां हैं। कर्म बंध चार प्रकार से वर्णन किया गया है। जैसे कि१ प्रकृति चन्ध 2 स्थिति वन्ध 3 अनुभाग यन्ध और 4 प्रदेश वन्ध / इन का स्वरूप निम्न प्रकार से पढ़िये।। १-प्रकृति वन्ध / / जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए कर्म पुद्गलों में जुदे जुदे * स्वभावों का अर्थात् शक्तियों का पैदा होना प्रकृति वन्ध / कहलाता है। २-स्थिति वन्ध / जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए कर्म पुद्गलों में अपने अपने काल तक अपने स्वभावों का त्याग न कर जीव के साथ रहने की काल मर्यादा का होना स्थिति वन्ध कहलाता है। ३-रस बन्ध। ___ जीव के द्वारा ग्रहण किये हुए कर्म-पुद्गलों में रस के तर / तम भाव का अर्थात् अत्यन्त फल देने की न्यूनाधिक शक्ति म का होना रस बन्ध कहलाता है। ४-प्रदेश बन्ध। जीव के साथ न्यूनाधिक परमाणु वाले कर्म स्कन्धों का सम्बन्ध होना प्रदेश वन्ध कहलाता है। अव इस स्थान पर प्रश्न यह उपस्थित होता है कि१प्रकृति वन्ध 2 स्थिति धन्ध 3 रस वन्ध और 4 प्रदेश बन्धal इन यन्धों को फिस दृष्टान्त द्वारा पूर्णतया अधिगत करना 1 चाहिये ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा जा सकता है कि मोदक के दृष्टान्त और दाष्टान्तिक में प्रकृति आदि का स्वरूप यो सम
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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