SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -ममननपद मानपEx. विपार्पियों के माता पिताओं को पोग्ग है कि जिस प्रकार सांसारिक समवि करते हुए अपने पुत्र और पुत्रियों को देखना भाहते है ठीक उसी प्रकार अपने मिव पाक और पाकिकामों * पार्मिक मीपन देखने की मी पेश करें। जिससे उनके पवित्र जीपम मविप्पत् की जनता के लिए मार्श रूप / बन माएँ। पार्मिक शिक्षाएं पोनों प्रभर की पाठशागों से सप मम्मए सकती₹से किएनीय पाठशाम्मो सेवागमवा की भोर से स्थापित पाठयाममों से / दिन 2 पाठशामों में पार्मिक शिषाएँ विशेष वा अनिवार्य रूप से दीगावी ते न उन पाठशाठामों से निपापियों को विशेप प्रम मेना ! पाहिए कारण किये पार्मिक शिपाय इस सम्म से सर पर मेक पक काम मातीमारी नहीं कि मन्तिम पर। ना निर्माण पर की प्राप्ति को बावामा पार्मिक पाठयामों को सुरक्षित रहन्ध और फिर उनसे मम प्राप्त करना पहरी मार्य पुरुषों का मुस्पोदेश्य होना चाहिए। मम प्रम मा पस्थित होता है कि पार्मिक शिक्षा दिन / का इस प्रम के समाधान में परा माता है कि भात्मा को पर्मों से मयुक्त मनापि मानते १ए फिर पन फों को BREFEREKHADEEODESE Peace .. ESEEL
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy