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________________ DESSA MDEEEEEI, - --- -- -- माते -पासिशाम्त सभी को अपना चिरस्व प्रकर करने के लिये पूर्ण बल देता है। / सो गाकथन से स्पतादी सिरो गया कि-कर्म सि साम्त का मानना पुलिपुलोसपा को बारपसे गीप / मुलीपा पुती रएि गोचर होते हैं। जैसे किभी भमर मग यान महावीर स्वामी मुबारविन से निकले ए-- सुपिपया कम्मा सषिपणा फसा मबति / दुषिपणा फम्मा दुधियणा फसा मबति॥ ये पवित्र वाक्य स्मरण कप कि एम को रे राम ही फल होते और माम कर्मों मशुम ही फल है। मता कम रुप ससार में कम से निपचिप किपामों माप मोह पर की मासि परनी चाहिए। " मारमा नियामम्द का रसी समप अनुभव कर सकता या फिपार्म कसा सबट जाप / असे मल उसी समय समतावा निर्ममता प्राप्त कर सकता किपा मस ] से रहित होनाए / सो निमानम्मी प्राप्ति के सिवे-सम्पग् पर्शन सम्पम् शान भीर सम्पम्वार से निम मारमा कोपिम् पित करना चाहिए। प्राचEVEDERAREareम - -- -- साब ERSERIES
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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