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________________ Reacारखा SHRESEBEERUT (12) जिन के होने में मनुप्प भावि पाणिवर्ग के प्रपत्र की अपक्षा पंची माती वा ऐसे परिवर्तन मी ते कि जिन में किसी के प्रयाकी अपेक्षा महीरावी / जब परवा 2 तर सपके संयोगों से सम्पवा पग झिया मावि शानियों से बनते रात। उदाहरण 4-मिकी पत्पर मारिधीजों का होने से पाटे मोटे टीने या पहाड़ियों का पन माना पर रपर से पानी का प्रबार मिल गाने से उनका नीरूप में पाना माप का पानीरूप में परसमा भीर फिर से पानी का मापकप पर माना इस्पादि / इसभिरको परि का कर्ता मानने की। क रत नाही। (2) दूसरे पाप का समापान-मासी सासर्य करते पैसा फस उनको कौमारा मिस गावाकमेव और प्राणी अपने किपे पुर फर्म का फल नहीं पाईवे-पा ठीक पर पाप्पान में रखना चाहिये कि जीपक पेतम के संग से कर्म में ऐसी शक्तिोबाची फि जिस से बामपने मणेपुर पिपाको निपत समय पर पीरपर प्रहर करता है।म पाव परमही मानता कितनसम्मम्प के सिपाप गर्म मोग केने में समर्प / / पाश्चमा पीकाता किफस देने के लिये परम्प बेसन की प्रेरणा मामले की . कोई बात नही पोषि-समी जीव वन सार्म करते रसके अनुसार पनकी दुशि सीजीबन जाती है. जिससे पुर बम फरकी पदामराने पर मीथे ऐसा काम कर पेठसबिशिससे समको अपने कर्मानुसार फल मिल मादाम करना एक बात और फल कोन बाहमा सरीपात। फेशन चारनामोनेदीसे दिये कमका start-E, Eschestern E समानाAmcareews
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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