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________________ मानसन्माना : IGEDE GEDEPEED3SETE मर्प-मो कोई सपकार करन की सामर्म होने पर मी : बासापस्पा में रोगी की सेवा नहीं करता प्रत्युत करता कि 'फ्मा इसमे मेरी सेवा की पी!" और गो दुर्मति तथा: पराबारी रोगियों की सेवा से भी पुराया जाता पित विचपाताभारमा में प्रबोधिमाप रत्पमकर रोगियों की सेवा से परास्मुख होकर महामाहनीप कर्म की उपासना | करता। पणीसपा महामोहनीय पिपप से कहाहि गरमई संपउँछे पुमो पुयो। सपतित्मासमेमार्य महामाई पकुम्मा // 30 // मर्थ-जोको बार बार प्तिादि कम पासी कपा का कपन करता है तथा पानपर्यन बारिमाप सीप नाथ करने पापी रूपा का कयन करता हैमा माम्मोहनीप कर्म की पार्यमा करता है। सचासो महामोहनीय पिपप जेप्रमाम्मिए बोए संपमा मे पुसो प्रसो। सहार्ड सही महामोई पहमा॥३१॥ अर्थ-जो सापा का मित्रता के पास्ते अपार्मिक योगों का पार पार सम्योग परत मांसपो महामोरनीय विषय " म मागुस्सए मोए भाषा पारसोइय, "TTE सेविपर्यतो भासया महामोई पाम // SEEEEE "महामोनीप की उपासना करनेवा।
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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