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________________ EBLEIBBQBIR DEL mar ( 132 ) मर्य-मिस रागामाभित होकर निषाद किया माता जिसके पासे सत्कार मिलता है और जिसकी सेवा से // शांतिपूर्वक निर्वाह हो रस रामा के पन लिए जो मम्पाप पूर्वक शुष्प होता। पा महामोरनीय। कर्म पांपता है। बौदा महामोहमीप विपप / इसरेय प्रदुपा गाम प्रविसरे ईसरीकए। तस्स सपमहीयस्स सिरी भनुस मागपा // 16 // ईसादोसेस भावि पशुसावितपेयसे / घे भराराम श्रेण महामोई पहमा // 17 // / अर्थ-भरने अपना नाम की जनता मे अनीश्वर स्वाति कोपर बना दिया रस ईश्वर की कृपा से भतुम सम्मी की प्रातिप्पोपसभापिएकर मेप और सोम पशीमूत होकर फिर मो पसुपित पिच से उस पर के पनाति में प्रतराय करता मर्याद पारी पार कोन मान कर उसके साथ पैर माष परता.पाम्पक्सि मा मोपनीय कर्म पता है। पम्बापों मामोदनीय विषम सप्पी महाभग्रं मचारं बो विस्सिद / / सेयावर पसरणारं महामोई पहम्मा 1 / / प्रर्प-से सपिपी नियमापो को भएप परती / उसी प्रकार गोम्पफ्ति अपने स्वामी को मारता बानो। - सैनिक सेनापति को मारता गोभमास्या प्रमाको मारता मान FREHERE BE -
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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