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________________ --EERH उIEEETFECIPE-.- नम्म्म्म्म्ममERE ( 120 ) है कि प्यान किस प्रकार से करना पाहिए! समरत्तर में कहा शावाकिमपम प्रापापाम द्वारा मन की एकाप्रसा कर सनी चाहिए, मिससे शीघ्र ही भारम स्वरूप में लीन हो सके। मापापाम तीन प्रकार से पर्यन किया गया जिसे किपूरफ कुमक और रेषक / पूरफ उसे का सोनाश भगुण यमास बाहर से वायुनीयर शरीर में पूर्ण करता / योस पूरक पवन को स्थिर करनामिकमम में पदे को जैसे भरे रसी प्रकार रोके (मि) नामि से भम्प अपापसमेनपार्कमक मायापाम कमागावा और गोमपम कोरफ से पवन को मति पक्ष से मंद मंद बाहर निकाले उसे पवनाम्यास के ग्रामों में विमानों में रेचकपा इस प्रकार प्रम्पास से सब मन की पकामता गाय, तब भपने मम्ताकरप से पुमा सम्पन्धी राप प पंप रसमौर स्पर्श से प्रारमा को प्रपर रहेमा पाहिए / इतना ही नही किन्तु फिर कास मन मारा पर विचार करना चाहिए कि देको परसा मायकि मेरा मारमा प्रमात राभिशासी होता मा मी कर्मों के पर से किस प्रकार पीपीन पशा को प्राप्त हो पापीर राग पपग्रीमतदोपर नाना प्रकार के करों को मोग मता प्रब मुमे पोम्प कि में सम्पम् पर्यन र मिन मारमपी पर्ने / पोषि पानी पुरुष सब तक म्पय पर मार नहीं वपतका समाधि में भी सीन नहीं सकता। भय प्रम पर परिपत होता कि ध्येय किसे करते। स प्रम के समापान में कहा जाने mi
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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