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________________ पEDuraATE: HIL.COM प्र समाप मिला मा पा सरसी प्रकार निस : मकार पनि मिपास के सिपे पास पर पड़ी पापित होगापास्तप में, मैं धमकान मेरे।। M मराम्यनुमेशा-परशारीर मामा का कोयी इस का कोई भी ऐसा भषयमनही जो सरेप पवित्रा सकता है।बामारुति देय करीम पर मोदित नोना पाहिए / परम समीतर की पया देखनी मारिए। जिस प्रकार पर गरीर मम मम का कोप है उसी प्रकार रोमों का मी भासपासककोई रोग मान नहीं मा तब तक पद पप्या भौर सम्बर लगता है फितु रोग के प्रकरसोगाने। पर इसकी पापाहति भी बिगड़ती इसलिये इस पर पर ममत्व मापन करना चाहिए / सपा इसको दुर्गम्पमय गान कर मास्मा का सम्पम् न सम्पप जान पीर सम्पा पारिक मारा प्रस्त करना चाहिए जिस से निर्वाव पर की र प्राप्ति हो सक। भावानुवा-मिस प्रकार पर का पारप तन्तु परदा मत्तिका धीर वपापालिका कारण यस का पीबी ठीक रसी प्रकार कर्म मूस मिपावरे। मिस प्रकार मरोगे समायु प्राता है तराग की मसानी से वसाप में समाता है इसी प्रकार प्रमावसे कर्म भावे, मिस प्रकार चोर रात्रि में मन कारणपरते। ठीक पसी प्रकार क्रोष मान मापा भीर बोम मारमा के पब कारपकर सवे तात्पर्य पाकि मिप्पाप अधिरवि ममाष पाप और पोगरे, हमारा भारमा के प्रदेशों पर कौनपरपाता है। TEIPIEBBELEEF.g त- Fuarees
SR No.010866
Book TitleJain Dharm Shikshavali Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
Publisher
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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